शरीयत के खिलाफ कोई भी कानून मानने के लिए मुसलमान मजबूर नहीं -मौलाना

बरेली : ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने उत्तराखंड विधानसभा में सामान्य नागरिक संहिता बिल पेश किए जाने पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि मुसलमान हर उस कानून को मानने के लिए तैयार हैं जिससे शरीयत का कोई टकराव न हो, अगर सामान्य नागरिक संहिता में शरीयत का लिहाज नहीं रखा गया है तो मुसलमान इस कानून को मानने के लिए बाध्य नहीं है।

यूसीसी कमेटी की अध्यक्ष रंजना देसाई ने छह महीने पहले अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि हम हर धर्म के विद्वानों से बात करके कानून लाएंगे। मगर उनकी कमेटी के लोगों ने मुस्लिम उलमा और मुस्लिम विद्वानों से बात नहीं की। सलाह-मशवरा नहीं लिया। इस तरह एक तरफा कानून बनाकर लागू करना संविधान के खिलाफ है।

मौलाना ने कहा यूसीसी जिस उद्देश्य से लाया गया है, वह उद्देश्य गलत है। भारत में शादी ब्याह के बहुत सारे मामलात एक पारिवारिक संस्कृति के तौर पर देखें जाते हैं। लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता देना या उस पर कानून बना देना ही भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। इस कानून से भारत की सदियों पुरानी संस्कृति तबाह और बर्बाद हो जाएगी। साथ ही समाजिक और परिवारिक ताना बाना बिखर जाएगा।

मौलाना ने कहा कि भारतीय संस्कृति और शरीयत का पुराना ताल मेल रहा है, शरीयत में भारतीय संस्कृति की बड़ी गुंजाइश है, और अगर गहराई से देखें तो कहीं भी टकराव नजर नहीं आता, मगर इस तरह के बनाएं जा रहे कानूनों की वजह से अब टकराव सामने आने लगा है। सत्ता पक्ष के लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि वो समाज को टकराव से बचाएं और भारतीय संस्कृति को नुक्सान पहुंचाने वाले कानूनों से सुरक्षित रखें। मौलाना ने कहा कि इस कानून में कुछ समुदाय को अलग रखा गया है, तो इसका मतलब ये हुआ कि यह सामान्य नागरिक संहिता नहीं है बल्कि सिर्फ मुसलमानों को भयभीत करने और परेशान करने के लिए कानून बनाया गया है। जबकि इस तरह की कार्रवाई को हमारा संविधान इजाजत नहीं देता है।