पीलीभीत: स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से चली गई नवजात की जान; 45 मिनट इलाज के लिए भटकता रहा परिवार!

पीलीभीत में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही का मामला सामने आया है, जहाँ प्रसव के दौरान इलाज नहीं मिलने से नवजात की मौत हो गई। आरोप है कि इमरजेंसी में ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर एसपी सिंह ने गर्भवती महिला को भर्ती करने से इंकार कर दिया था। स्टाफ ने भी महिला के परिजनों की गुहार को अनसुना कर दिया। मामला स्वशासी राजकीय जिला अस्पताल का है।

बताते हैं किग्राम देवीपुरा निवासी 25 वर्षीय सुमन कुमारी को एंबुलेंस से प्रसव के लिए जिला अस्पताल लाया गया था। सुमन नौ माह की गर्भतवी थी। वह दो दिन पहले ही परिवार के साथ देवीपुरा गांव आई हुई थी। जब उसे प्रसव पीड़ा हुई तो पहले परिजन एंबुलेंस से लेकर आने की तैयारी कर रहे थे। मगर जल्दी लाने के चक्कर में उसे ई-रिक्शा से लेकर अस्प्ताल के लिए निकल पड़े उसके साथ सास मुन्नी देवी, ससुर कृष्णपाल और कृष्णपाल के बहनोई पप्पू आए थे। वह ई-रिक्शा से दोपहर करीब 2.10 बजे मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी के पास आ गए थे। ई-रिक्शा चालक ने उन्हें इमरजेंसी के बाहर उतार दिया।

ससुर ने बताया कि महिला अस्पताल के पुराने भवन पर पहुंचे, तो गेट बंद मिला। इसके बाद कई लोगों से जानकारी की, मगर किसी ने सही जानकारी नहीं दी। 2.35 बजे वह इमरजेंसी वार्ड में गए और ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर व अन्य स्टाफ से महिला को प्रसव पीड़ा की बात बताकर भर्ती करने की गुहार लगाई। लेकिन डॉक्टर ने उनकी बात अनसुनी कर दी और महिला अस्पताल ले जाने को कह दिया। जब महिला अस्पताल पहुंचवाने की व्यवस्था करने के लिए कहा तो टालमटोल करने लगे। करीब दस मिनट तक बहस चली और फिर परिजन वापस बाहर आ गए। किसी तरह की कोई मदद नहीं की गई। महिला की चीख पुकार सुनकर परिसर में बने पार्क में बैठी कुछ महिलाएं मदद के लिए आ गई। फिर उनकी मदद से बेंच पर ही प्रसव कराया।

नॉर्मल प्रसव के दौरान महिला ने नवजात (पुत्र) को जन्म दिया। करीब दस मिनट के बाद नवजात की मौत हो गई। उनका कहना है कि चीख पुकार मची रही लेकिन उसके बाद भी जिम्मेदार बेसुध बने रहे। महिला स्टाफ तक मौके पर नहीं आई। बाद में सड़क पर हुए प्रसव के दौरान नवजात की मौत का शोर सोशल मीडिया पर मचा तो सीएमएस महिला अस्पताल डॉ. राजेश अन्य स्टाफ संग आ गए। फिर आनन-फानन में प्रसूता को महिला विंग में भर्ती कराया गया। चेकअप के बाद बताया कि उसकी हालत ठीक है। मगर नवजात की मौत पर लापरवाही को लेकर चुप्पी साध गए।

108 एंबुलेंस के कर्मचारी भी बने रहे मूकदर्शक-

महिला को प्रसव पीड़ा के दौरान परिवार महिला अस्पताल पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य कर्मी और स्टाफ से मदद की गुहार लगाता रहा। मगर किसी ने नहीं सुनी। उनका कहना है कि चंद कदम की दूरी पर ही 108 एंबुलेंस व उसके कर्मचारी भी मूदकर्शक बने हुए थे। किसी ने भी कोई मदद नहीं की। कुछलोगों ने एंबुलेंस से प्रसूता को महिला अस्पताल तक छोड़ने की बात भी कही लेकिन इनकार कर दिया गया।

साथ ही गर्भवती महिलाओं को ई-रिक्शा में लेते वक्त काफी झटके लगे थे। जिस वजह से प्रसव पीड़ा और बढ़ गई। इतना ही नहीं नियम है कि अस्पताल कैंपस के भीतर ब्रेकर नहीं होना चाहिए। मगर अस्पताल कैंपस में ही दो स्थान पर ब्रेकर बने हुए हैं। जिनके ऊपर से जब वाहन गुजरते हैं तो गर्भवती को दिक्कत होती है। कहीं न कही टूटी सड़क, गड्ढे और ब्रेकरों ने भी गर्भवती महिलाओं के लिए मुसीबत बनी।