बकरीद आज; अपनों में प्यार बांटने का है ये त्योहार!

इस्लाम धर्म में ईद उल अजहा दूसरा सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है. यह त्योहार जून के महीने में मनाया जाता है. कहा जाता है कि जून का महीना इस्लाम धर्म के लिए कुर्बानी का महीना होता है, जिसे बकरीद भी कहते हैं. दरअसल, ईद उल अजहा के दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, इस बार ईद उल अजहा 17 जून यानी आज मनाई जाएगी. ईद उल अजहा को बकरीद (Bakrid) या बकरा ईद या ईद उल बकरा (Eid al-Adha 2024) के नाम से भी जाना जाता है.

कब है बकरीद 2024?

इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, 12वें महीने जु अल-हज्जा की 10वीं तारीख को बकरीद का पर्व मनाया जाता है. इस बार बकरीद आज मनाई जा रही है. भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अन्य दक्षिण एशियाई देशों और दक्षिण अफ्रीका में ईद-उल-अजहा खाड़ी मुल्कों से एक दिन बाद यानी 17 जून, 2024 को मनाई जा रही है, क्योंकि इन क्षेत्रों में 07 जून को धू-अल-हिजाह का चांद देखा गया था. हालांकि, हर देश में ईद-उल-अजहा की तारीख अलग-अलग होती है, क्योंकि ये त्योहार भी बाकी के इस्लामिक त्योहारों की तरह चांद दिखने पर निर्भर करता है.

बकरीद में है कुर्बानी देने का नियम

ईद-उल-अज़हा के दिन किसी जानवर की कुर्बानी देने का विधान है. अल्लाह की राह में पशुओं की कुर्बानी देना एक महान इबादत माना जाता है. कुर्बानी तय की गई तिथियों में ही दी जानी चाहिए. ज़ुल हिज्जा की 10वीं तारीख को ईद की नमाज़ के बाद और 13 ज़ुल हिज्जा के सूर्यास्त से पहले ही कुर्बानी दे सकते हैं. इस दौरान आप बकरा के अलावा ऊंट, भैंस, भेड़, बकरी आदि की कुर्बानी दे सकते हैं. धार्मिक मान्यता है कि भेड़ और बकरी को एक ही कुर्बानी के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं. जबकि ऊंट को सात लोगों के बीच साझा कर सकते हैं. कर्बानी के लिए कभी भी पशु के बच्चों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. कुर्बानी देने वाले व्यक्ति को अल्लाह के नाम पर कुर्बानी देने की नियत होनी चाहिए. कहा जाता है कि जो व्यक्ति कुर्बानी देगा, वह ज़ुल कदाह के आखिरी दिन सूरज डूबने के बाद से लेकर बकरीद के दिन तक कुर्बानी देने तक अपने शरीर का कोई बाल, नाखून या फिर किसी तरह से स्किन नहीं हटा सकता है.

कैसे मनाया जाता है ईद-उल-अजहा 

ईद-उल-अजहा के दिन इस्लाम धर्म के लोग सुबह जल्दी उठकर नहाते हैं और फिर नए कपड़े पहनते हैं. फिर पुरुष ईद की नमाज पढ़ने के लिए ईदगाह या मस्जिद जाते हैं. नमाज के बाद भेड़ या बकरे की कुर्बानी दी जाती है. बता दें कि कुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है. पहला भाग गरीबों और जरूरतमंदों में बांटा जाता है, जबकि दूसरा हिस्सा रिश्तेदार और दोस्तों को दिया जाता है. वहीं तीसरा भाग परिवार के लिए रखा जाता है.

अपनों में प्यार बांटने का है ये त्योहार

ईद उल अजहा के दिन ईदगाह में सुबह ईद की नमाज अदा की जाएगी. ईद की नमाज अदा करने के बाद सभी मुस्लिम भाई एक-दूसरे के गले मिलेंगे और ईद की मुबारकबाद देंगे. वहीं ईद-उल-अजहा के दिन सभी रिश्तेदारों से मिलने, दावत खाने और एक-दूसरे को उपहार देने का भी काफी महत्व होता है. बच्चे नए कपड़े पहनकर और ईदी (ईद की राशि) लेकर बहुत खुश होते हैं.