आज से चैत्र नवरात्रि आरंभ, पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की होगी पूजा!

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर साल चैत्र नवरात्रि का पावन पर्व चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होता है. चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन हिंदू नववर्ष की शुरूआत और गुड़ी पड़वा भी होती है. चैत्र नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करते हैं, उसके साथ ही 9 दिनों का व्रत प्रारंभ होता है. चैत्र नवरात्रि प्रथम दिन नवदुर्गा में से प्रथम मां शैलपुत्री की पूजा होती है. चैत्र नवरात्रि की अष्टमी को दुर्गा अष्टमी मनाई जाती है और कन्या पूजन एवं हवन करते हैं. नवमी के दिन राम नवमी मनाई जाती है क्यों​कि चैत्र शुक्ल नवमी तिथि को अयोध्या में भगवान राम का जन्म हुआ था. उसके बाद चैत्र नवरात्रि व्रत का पारण होता है.

आज से चैत्र नवरात्रि आरंभ हो गई है। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा का विधान होता है। हिंदू धर्म में नवरात्रि के पर्व का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि पर 9 दिनों तक देवी दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है। इस बार चैत्र नवरात्रि पूरे 9 दिनों तक चलेगी। नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं।

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा

नवरात्रि पर्व की शुरुआत प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना के साथ होती है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने का विधान होता है। मां शैलपुत्री का स्वरूप माथे पर अर्धचंद्र, दाए हाथ में त्रिशूल, बाएं हाथ में कमल और नंदी पर सवार हैं।

मान्यता है मां शैलपुत्री का जन्म राजा दक्ष की पुत्री सती के रूप में हुआ था। जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया और उसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया लेकिन भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया। जब देवी सती को इसके बारे में पता चला तो वह अपने पिता के घर बगैर निमंत्रण के ही पहुंच गईं। जहां पर महादेव के प्रति अपमान महसूस होने पर उन्होंने स्वयं को महायज्ञ में जलाकर भस्म कर लिया। जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो उन्होंने यज्ञ को ध्वंश करके सती को कंधे पर लेकर तीनों में विचरण करने लगे। इसके बाद भगवान विष्णु ने भगवान शिव के मोह को दूर करने के लिए सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से काटकर 51 भागों में विभक्त कर दिया। मान्यता है कि माता सती के टुकड़े जहां-जहां पर गिरे वे सभी शक्तिपीठ कहलाए। इसके बाद देवी सती ने शैलराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में दोबारा जन्म लिया, जिन्हें माता शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है।